सैन्य मोर्चों पर कितना मजबूत भारत
गलवान घाटी में हुई घटना के बाद दुनियाभर के देश भारत के पक्ष में आ खड़े हुए थे। सभी देशों ने एक सुर में चीन की विस्तारवादी नीति की निंदा की थी। दरअसल, चीन के वर्तमान भू-भाग का एक बड़ा हिस्सा उसकी विस्तारवादी नीति का नतीजा है। जिसकी वजह से उसके तकरीबन हर पड़ोसी देश से संबंधों में कटुता है।
आज भारत में सेना के शौर्य और बलिदान को याद करते हुए कारगिल विजय दिवस मनाया जा रहा है। 3 मई, 1999 को पाकिस्तान द्वारा छेड़े गए छद्म युद्ध में भारतीय सैनिकों ने अपनी वीरता का प्रदर्शन करते हुए कारगिल की चोटी पर तिरंगा लहराया था। ‘ऑपरेशन विजय की घोषणा के साथ भारतीय सैनिकों ने अपनी जान की परवाह किए बिना 18 हजार फीट की ऊंचाई पर बैठे पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए कमर कस ली थी। करीब तीन महीने तक चले कारगिल युद्ध में भारत में की तीनों सेनाओं ने पाकिस्तान पर चौतरफा हमला कर घुसपैठियों को धूल चटा दी थी। कारगिल युद्ध के दौरान भारत के 527 सैनिकों ने शहादत दी थी और 1300 से ज्यादा सैनिक घायल हुए थे। कारगिल में पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों की जानकारी एक चरवाहे ने भारतीय सेना के गश्ती दल को दी थी। इस स्थिति में ये कहा जा सकता है कि भारत की तमाम खुफिया एजेंसियां पाकिस्तान ओर से आने वाले इस संभावित खतरे को लेकर बेखबर थीं। 14 जुलाई 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय की सफलता की घोषणा कर दी थी। लेकिन, कारगिल युद्ध की समाप्ति आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई 1999 को हुई थी। भारत के साथ युद्धों में लगातार शिकस्त खाने के बावजूद भी पाकिस्तान अभी तक सुधरा नहीं है। वहीं, चीन के रूप में भारत के सामने एक नया दुश्मन आ खड़ा हुआ है। इस स्थिति में एक सवाल काफी अहम हो जाता है कि सैन्य मोर्चों पर भारत कितना मजबूत हुआ है?

पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों की जानकारी एक चरवाहे ने भारतीय सेना के गश्ती दल को दी थी। इस स्थिति में ये कहा जा सकता है कि भारत की तमाम खुफिया एजेंसियां पाकिस्तान की ओर से आने वाले इस संभावित खतरे को लेकर बेखबर थीं। 14 जुलाई 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऑपरेशन विजय की सफलता की घोषणा कर दी थी। लेकिन, कारगिल युद्ध की समाप्ति आधिकारिक तौर पर 26 जुलाई 1999 को हुई थी।
रक्षा बजट के नाम पर भारत के पास क्या है? पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसी देशों के बीच फंसा भारत रक्षा बजट के नाम पर सेना के ऊपर बहुत ज्यादा खर्च नहीं करता है। बीते कुछ सालों में चीन के साथ डोकलाम और पूर्वी लद्दाख में भारत के लिए हालात काफी बिगड़े हैं। गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प के बाद माना जा रहा था कि 2021-22 के रक्षा बजट में भारतीय सेना को मजबूत करने के प्रयास किए जाएंगे। लेकिन, 2021-22 के बजट में 4178 लाख करोड़ रुपयों का ही आवंटन हुआ। जो पिछले वित्त वर्ष की तुलना में केवल 7134 फीसदी ज्यादा ही था। हालांकि, मोदी सरकार के सत्ता में आने के सात साल पूरे होने के बाद रक्षा बजट में काफी बढोत्तरी हुई है। 2014 में मोदी सरकार ने सेना के लिए 2133 लाख करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। कहा जा सकता है कि भारत का रक्षा बजट बीते साल सालों में करीब दो गुना हो गया है। वर्तमान में भारत के लिए सबसे बड़ी चुनौती बन चुके चीन की तुलना में भारत का रक्षा बजट ऊंट के मुंह में जीरा’ कहा जा सकता है। चीन का रक्षा बजट 210 अरब डॉलर का है और भारत का रक्षा बजट करीब 70 अरब डॉलर का। वहीं, भारत के रक्षा बजट में पूर्व सैनिकों की पेंशन का हिस्सा भी जुड़ा हुआ है। आसान शब्दों में कहें, तो भारत का रक्षा बजट पूरी तरह से सेना के आधुनिकीकरण के लिए इस्तेमाल नहीं होता है। चीन और पाकिस्तान से घिरे भारत के लिए रक्षा बजट काफी अहम है। लेकिन, इसकी बढ़ोत्तरी बहुत ज्यादा नहीं हुई है। चीन का रक्षा बजट भारत से तीन गुना ज्यादा है। हालांकि, पाकिस्तान से तुलना करने पर भारत इस मामले में काफी आगे नजर आता है। लेकिन, वर्तमान समय में भारत के सामने पाकिस्तान से बड़ी चुनौती चीन है। चीन के इशारे पर ही पाकिस्तान और नेपाल जैसे पड़ोसी देश भी भारत को आंख दिखा रहे हैं। गौरतलब है कि नेपाल के साथ भी भारत का सीमा विवाद काफी बढ़ा है। बीते कुछ सालों में भारतीय सेना के आधुनिकीकरण में तेजी आई है। लेकिन, इसकी गति बहुत धीमी है
सेना की तुलना में भी चीन से पीछे भारत
दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी वायुसेना रखने वाले चीन सेना के मामले में भारत से ज्यादा ताकतवर है। भारत के मुकाबले चीन के पास दोगुने से ज्यादा एयरक्राफ्ट हैं। नौसेना के मामले में भी चीन कहीं आगे नजर आता है। थल सेना में भारत के पास कुल एक्टिव 14148 लाख सैनिक हैं। वहीं, चीन के पास 21183 लाख एक्टिव सैनिक हैं। चीन ने अपनी सेना का एक बड़ा हिस्सा हिमालय से लगी सीमाओं पर तैनात किया हुआ है। कहना गलत नहीं होगा कि भारत किसी भी स्थिति में चीन से युद्ध नहीं चाहेगा। अगर ऐसी स्थिति बनती है, तो भारत के लिए पाकिस्तान के मोर्चे पर भी समस्या खड़ी हो सकती है। जो भारत के लिहाज से खतरनाक हालात बना देंगे। सेना और रक्षा बजट के नाम पर भारत कमजोर जरूर नजर आता हो, लेकिन कूटनीति के मामले में देश कहीं ज्यादा आगे है। चीन के सबसे बड़े दुश्मन अमेरिका के साथ भारत के रिश्ते लगातार मजबूत हो रहे हैं। चीन के घेरने के लिए अमेरिका ने बारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर क्वाड समूह बनाया है। दक्षिण चीन सागर और हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते प्रभाव पर अंकुश लगाने के लिए अमेरिका ने क्वाड समूह की स्थापना की है। गलवान घाटी में हुई घटना के बाद दुनियाभर के देश भारत के पक्ष में आ खड़े हुए थे। सभी देशों ने एक सुर में चीन की विस्तारवादी नीति की निंदा की थी। दरअसल, चीन के वर्तमान भू-भाग का एक बड़ा हिस्सा उसकी विस्तारवादी नीति का नतीजा है। जिसकी वजह से उसके तकरीबन हर पड़ोसी देश से संबंधों में करता है। भारत इसी आधार पर अपनी रणनीति बनाते हुए चीन के विरोधी देशों के साथ मेल-जोल को बढ़ावा दे रहा है। कहना गलत नहीं होगा कि सेना के मामले में भारत भले ही चीन से कमजोर हो। लेकिन, चीन किसी भी तरह की हरकत करने से पहले सौ बार सोचेगा।