कांग्रेस का अदूरदर्शी

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राजनैतिक दल में तानाशाही न हो, परंतु अपनी जमीन पाने की कोशिश में लगी कांग्रेस अगर बगावती नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने की बजाय उन्हें महत्वपूर्ण पद देती रहेगी तो उसे अपनी और भी अधोगति के लिये तैयार रहना चाहिये।

अगर कोई पूछे कि देश के सबसे बड़े राजनैतिक दल कांग्रेस की ऐसी हालत क्यों है, तो उसे पंजाब का हालिया घटनाक्रम उदाहरण के रूप में बतलाया जा सकता है जिसमें पार्टी ने एक मसखरे के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। मुख्यमंत्री के रूप में वहां कई चुनौतियों के साथ काम कर रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के समकक्ष भारतीय जनता पार्टी में वर्षों सदस्य के रूप में सेवाएं दे चुके और शासकीय कार्यों से ज्यादा कॉमेडी सर्कस को तरजीह देने वाले नवजोत सिंह सिद्धू को इसलिये सूबे का इकाई अध्यक्ष बना दिया गया। नाम पर चार कार्यकारी अध्यक्षों के साथ सिद्धू क्योंकि उनके सुर बगावती हो चले थे और वे अनुशासनहीनता की सारी सीमाएं लांघ रहे थे। बुढ़िया के मरने से अधिक खतरा यह है कि भूत ने घर देख लिया है। कुछ राज्यों में पार्टी कमान के भय से शांत बैठे बगावती नेताओं में भी इससे जान पड़ सकती है और लोग सिद्धू की कामयाबी का रास्ता अपना सकते हैं। अच्छा काम करने वालों का इस फैसले से हतोत्साहित होना भी स्वाभाविक है। ‘चेक एंड बैलेंस के को पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाना यह भी जाहिर करता है कि कांग्रेस धीरे धीरे अपनी समस्याओं को न केवल खुद आमंत्रित करने लगी है, बल्कि वह लाचारगी और बेचारगी की स्थिति में खुद को पहुंचाने के निर्णय सायास उपक्रम कर रही है।

कांग्रेस नेतृत्व का यह एक ऐसा कदम है जो उसे कमजोर साबित करने और जगहंसाई का पात्र बनने का सबब बनेगा। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से लेकर कई कॉमेडी शो में शिरकत करने वाले सिद्धू ने भारतीय जनता पार्टी से अपना राजनैतिक सफर प्रारम्भ किया था। वाक्चातुर्य और पूर्व अर्जित लोकप्रियता के बल पर वे अमृतसर लोकसभा सीट से जीत हासिल कर संसद तक पहुंचे। पिछले लोकसभा चुनाव में उन्हें टिकट न मिलने से वे उसी कांग्रेस में आ गये, जिन्हें वे मन-मन भर खरी-खोटी सुनाते थे और जिसका भरपूर उपहास उड़ाते थे। राहुल एवं प्रियंका गांधी की विशेष दिलचस्पी के कारण वे इस पार्टी में आए। जिस श्रद्धा भाव से वे भाजपा नेताओं का गुणगान करते थे, उससे कहीं अधिक गहन आस्था उन्होंने नयी पार्टी के प्रति न केवल कांग्रेस के दिल्ली में हुए खुले अधिवेशन में पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की शान में कसीदे पढ़कर लोगों से जमकर तालियां नेतृत्व में व ठुकवाई। अमृतसर विधानसभा सीट से वे सरकार गि चुनाव जीते और मंत्रिमंडल में जगह पाई लेकिन शुरुआत से ही वे कैप्टन के लिए सिरदर्द साबित हुए। मंत्री बनने के बाद भी वे टीवी शोज के प्रति उन्हें भी अश अपनी आसक्ति और शिरकत नहीं त्याग पाये जो कि आर्थिक लाभ प्राप्त करने के कारण से हाथ मिल नियमों के प्रतिकूल था। मुख्यमंत्री की मनाही के लगेगी। राज बाद भी वे कॉमेडी शो करते रहे। इतना ही नहीं, अपनी जमीन अमरिंदर सिंह द्वारा मना करने के बाद भी वे गुरु अगर बगाव नानकदेव के करतारपुर साहिब कॉरिडोर के दिखाने की ब उद्घाटन अवसर पर न केवल पाकिस्तान गये तो उसे अपनी वरन पाक सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा से गले भी लगे। इसके पहले वे 2018 में इमरान खान के प्रधानमंत्री बनने पर भी पाकिस्तान चले गये थे। इन दोनों ही कदमों से पार्टी की जमकर छीछालेदार हुई थी और भारतीय जनता पार्टी ने इसका खूब इस्तेमाल कांग्रेस को नीचा दिखलाने के लिए किया था। आखिरकार अमरिंदर सिंह को उन्हें मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखलाना पड़ा था। इसके बाद सिद्धू ने अमरिंदर के खिलाफ एक तरह से बगावत का झंडा ही बुलंद कर दिया था। वे विधायकों को राज्य नेतृत्व के विरूद्ध भड़काते भी रहते थे। हाल ही में उन्होंने आम आदमी पार्टी की भी तारीफ की थी। इससे उनके एक और संभावित दलबदल से घबराकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने दोनों (अमरिंदर-सिद्धू) के बीच सुलह के तौर पर यह फार्मूला निकाला जिसके बारे में कह सकते हैं कि ‘इलाज बीमारी से कहीं अधिक जानलेवा साबित होगा।’ इस मान्यता के कई कारण हैं। पहला तो यह है कि छत्तीसगढ़ को छोड़कर कांग्रेस की ज्यादातर राज्यों में जो सरकारें हैं वे कमजोर हैं और वहां भाजपा द्वारा तोड़-फोड़कर उन्हें गिराये जाने का वैसा ही खतरा है जैसा हम मध्यप्रदेश में देख चुके हैं। यहां ज्योतिरादित्य के नेतृत्व में दलबदल कराकर कमलनाथ की सरकार गिरा दी गई। राजस्थान में सचिन पायलेट लम्बे अरसे से ज़ब्त किये बैठे हैं। अगर इस प्रकरण से उनका उत्साहवर्धन होता है तो उन्हें भी अशोक गहलोत से गद्दी छीनने के लिये बगावत करने या फिर सिंधिया की तरह भाजपा से हाथ मिलाकर सरकार गिराने में देर नहीं लगेगी। राजनैतिक दल में तानाशाही न हो, परंतु अपनी जमीन पाने की कोशिश में लगी कांग्रेस अगर बगावती नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने की बजाय उन्हें महत्वपूर्ण पद देती रहेगी। तो उसे अपनी और भी अधोगति के लिये तैयार रहना चाहिये।

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